अमेरिका ने मोदी को वीज़ा न देने का फ़ैसला क्यों किया?
मार्च 2005 में अमेरिका ने मोदी को राजनयिक वीज़ा देने से इनकार किया, और उसके पास जो बिज़नेस और टूरिस्ट वीज़ा था, रद्द किया। 2002 की गुजरात हिंसा के बाद अमेरिका में अनिवासी भारतीय (एनआरआई) जनसमुदाय के अभियान का इसमें बड़ा हाथ था, और वीज़ा प्रतिबंध 2014 तक कायम रहा। यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ - अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग) की उपाध्यक्ष कटरीना लैंटोस स्वेट ने लिखा है कि आयोग ने इस प्रतिबंध को कायम रखने के अनुरोध पर गंभीरता से सोचा। फ़ैसला इस लिए लिया गया कि हिंसा में मोदी की भूमिका क्या था - यह सवाल खुला है, और पीड़ितों को न्याय अब तक नहीं मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि वीज़ा द्वारा मोदी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में स्वीकृति पाने की कोशिश कर रहा है।
वीज़ा प्रतिबंध के समर्थन में इंडिया के 65 सांसदों ने बराक ओबामा को चिट्ठी लिखी थी जिसमें मोदी को वीज़ा न देने का अनुरोध था। इनमें से नौ सांसदों ने बाद में कहा कि उन्होंने इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, लेकिन एक फोरेंसिक विशेषज्ञ ने प्रमाणित किया कि चिट्ठी पर सांसदों के हस्ताक्षर असली थे। इससे लगता है कि उन नौ सांसदों ने देशभक्त न लगने के डर से बाद में अपना खयाल बदला। फरवरी 2014 में अमेरिका की राजदूत नैन्सी पॉवेल मोदी से मिली जिससे लग सकता था कि वीज़ा प्रतिबंध हटाया जाएगा, लेकिन उन्होंने कहा कि वीज़ा नीति में कुछ बदलाव नहीं हुआ है।
2002 से 2012 तक यूके में भी मोदी के लिए वीज़ा प्रतिबंध था। प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, यूके में संघ परिवार के सदस्य कोशिश कर रहे थे कि यूके संसद मोदी को आने का निमंत्रण दे। पर कुछ एनआरआई और मानव अधिकार संगठनों ने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई। यूके संसद में एक प्रस्ताव भी था कि वीज़ा प्रतिबंध फिर से स्थापित किया जाए। गुजरात 2002 हिंसा में दो ब्रिटिश नागरिकों की हत्या हुई थी, और इस मामले में मोदी के खिलाफ़ यूके में कानूनी कार्रवाई की संभावना है।