गुजरात 2002 में क्या हुआ?
फ़रवरी-मार्च 2002 के दौरान गुजरात में भयंकर सांप्रदायिक हिंसा हुई। 2005 में गुजरात सरकार ने संसद में प्रश्नोत्तर में कहा कि 790 मुसलमान और 254 हिन्दू मरे, 2548 लोग घायल हुए और 223 लोग लापता थे। ये आंकडे गुजरात सरकार के दिए हुए हैं, जो खुद इस हिंसा में भागीदार थे, और इस वजह से संदेहवाद हैं - कुछ संगठनों के अनुसार आंकडे इससे कई ज़्यादा हो सकते हैं। जबकी इन आंकडों का मुकम्मल रेकार्ड शायद कभी नहीं होगा, इसमें कोई शक नहीं कि हिंसा बहुत क्रूर थी, कि बलात्कार और यौन हिंसा का व्यवस्थित उपयोग हुआ, कि पीडित ज़्यादातर मुसलमान थे, और कि हिंसा में पुलिस और सरकारी अधिकारियों का बड़ा भाग था।
हिंसा गोधरा में शुरु हुई जहाँ साबरमती एक्स्प्रेस ट्रेन में लगी आग से 59 लोगों की मौत हुई, जिनमें कुछ अयोध्या से लौटते हुए कारसेवक भी थे। यह आग दुर्घटना थी या साज़िश, और साज़िश तो उसमें किसका हाथ था, ये बातें अब तक स्पष्ट नहीं हैं (विकिपीडिया पन्ने पर दिए हुए सूत्र और यह रिपोर्ट देखें)। ऐसा कहा जाता है कि जो हिंसा उसके बाद हुई, आग के प्रतिशोध में थी। नरेंद्र मोदी ने कहा, "क्रिया-प्रतिक्रिया की चेन चल रही है - हम चाहते हैं कि न क्रिया हो और ना प्रतिक्रिया।" लेकिन मानवाधिकार संगठनों के अनुसार हिंसा पहले से आयोजित थे, और उसमें पुलिस और राज्य सरकार का हाथ भी था।
हिंसा के लिए अपराधी पाये गए कई लोगों के बयान के अनुसार गुजरात सरकार के अधिकारी, राजनेता, और पुलिस हिंसा में भागीदार थे। कंसर्न्ड सिटिज़न्स ट्राइब्यूनल की रिपोर्ट और गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार की गवाही भी बीजेपी, संघ परिवार, और राज्य सरकार के हिंसा में हाथ ज़ाहिर करते है। स्वयं मोदी की भागीदारी का सवाल दूसरे सवाल-जवाब का विषय है।