Narendra Modi
नरेंद्र मोदी फ़ैक्ट्स

नरेंद्र मोदी 2014 के आम चुनाव में भारत का प्रधानमंत्री बन गया। इधर उस पर, और उसको समर्थन देने वाले हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों पर, जानकारी और विश्लेषण (analysis) हैं।


मोदी का "पीआर मशीन" ने प्रधान मंत्री बनने में उसकी सहायता कैसे की?

एक ज़माना था जब नरेंद्र मोदी का नाम बहुत लोगों के मन में गुजरात 2002 की हिंसा से जुड़ा हुआ था। तो कैसे कुछ ही साल बाद वह देश का प्रधान मंत्री बन पाया? इस किस्से में उसकी पीआर मशीन ने एक बड़ी भूमिका निभायी। मोदी और बीजेपी के मौजूदा, प्रभावशाली प्रचार-प्रसार तंत्र जो है, 2014 के पहले से बनता जा रहा है।

गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर होने के दौरान मोदी ने अपने 'इमेज' बनाए रखने के लिए एक बड़ा पीआर मशीन खड़ा किया। इस पीआर मशीन का एक प्रधान मकसद गुजरात सरकार के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में एक सकारात्मक छवि पेश करना था। इसके लिए मीडिया में गुजरात सरकार द्वारा दी गई कहानियाँ लगातार प्रस्तुत की जाती थीं। मोदी का अपना टीवी चैनल था और उसके भाषणों का एक साथ कई जगहों पर थ्री-डी प्रसारण किया जाता है। हालांकी यह स्पष्ट नहीं है कि इसका खर्चा कितना था और इसे किसने उठाया

मीडिया स्ट्राटेजी का एक और पहलू प्रसिद्ध व्यक्तियों का समर्थन हासिल करना था ज्योंकि कभी कभी बहुत सफलता से किया जाता था। फ़र्ज़ी कहानियाँ फैलायी जाती थी, जैसे एक अजीब कहानी जिसके अनुसार 'रैम्बो' जैसे मोदी ने उत्तराखंड बाढ़ से 15,000 गुजरातियों को बचाया। यह कहानी, जो मुख्य धारा के कुछ अखबार ने बिना कुछ जांच किए फैलायी, झूठी निकली, और मालूम पड़ा कि बीजेपी द्वारा फ़ैलाई गई थी

गुजरात सरकार के प्रचार प्रसार में एक महत्त्वपूर्ण स्थान अमरीकी पीआर कंपनी एपको वर्ल्डवाइड की थी। 2006 से मार्च 2013 तक, एपको गुजरात सरकार के अंतरराष्ट्रीय पीआर के लिए ज़िम्मेदार थी। हालांकि एपको के अनुसार वे सिर्फ़ गुजरात राज्य का प्रचार कर रहे थे और मोदी का नहीं, सच्चाई यह है कि मोदी की सफ़लता का एक कारण उनका 'वाइब्रेंट गुजरात' अभियान के बढ़ाए हुए दावे थे। जहाँ पहले मोदी का नाम हिंसा और सांप्रदायिकता से जुड़ा हुआ था, ये ही सब अभियान से उसका नाम विकास से जुड़ गया। दरअसल, जो एपको की सहायता से गुजरात की विकास की कथा बनी, उसमें सच्चाई थोड़ी ही थी। लेकिन मोदी के "विकास पुरुष" में जो परिवर्तन हुआ इसका अहम नतीजा था कि कई लोग जो अपने को सांप्रदायिक नहीं मानते थे अब बिना संकोच के मोदी को वोट दे सकते थे।


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पिछला अपड़ेट: Oct. 2019