फ़र्ज़ी मुठभेड़ (फ़ेक एन्कौंटर) क्या है?
फ़र्ज़ी मुठभेड़ (फ़ेक एन्कौंटर) पुलिस या सेना द्वारा कानून के बाहर की जाने वाली हत्या होते है, खासकर जिसमें मारे जाने वाले लोग पहले से पुलिस के हिरासत में होते हैं, और हत्या ऐसे की जाती है जिससे लगता है कि बंदूकों से आपस में लड़ाई हुई हो। अक्टूबर 2002 और दिसंबर 2006 के बीच गुजरात पुलिस द्वारा कम से कम 21 एन्कौंटर हत्या हुई (एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार 2002-2006 के बीच गुजरात में पुलिस द्वारा कानून के बाहर 31 हत्याएँ हुई)। 2013 में एक दर्जन के ऊपर वरिष्ठ पुलिस अफ़सर इन मामलों में या तो जेल में थे, या उन पर कानूनी कार्रवाई चल रही थी। आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में 2001 से 2016 तक पुलिस हिरासत में मौत के 180 मामले सामने आए, लेकिन इस दौरान किसी भी पुलिसकर्मी को इनके लिए सजा नहीं मिली।
गुजरात सरकार इन में से कई मामलों में स्वयं अभियुक्त है। इशरत जहान फ़ेक एन्कौंटर इनमें से सबसे जाना माना है। इशरत उन्नीस साल की मुंबईवासी छात्र थी जो तीन और लोगों के साथ 2004 में मारी गई। इस मुठभेड़ के पूर्व कुछ दिनों में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं और पुलिस अफ़सरों के बीच लगातार संपर्क के सबूत हैं, और खासकर अमित शाह का नाम सामने आता है। मोदी ने इशरत की हत्या करने वाले पुलिस कर्मियों की प्रशंसा करते हुए इशरत को आतंकवादी बताया। पर उसका आतंकवादी होने का कोई साफ़ सबूत पेश नहीं किया गया है, हालांकि अफ़वाहें बार-बार फैलायी गई है। मार्च 2014 में सीबीआई (केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो) को एक सीडी मिल गई जिसमें गुजरात के कुछ शीर्ष नेता और पुलिस अधिकारी इशरत जहाँ एन्कौंटर जाँच को प्रभावित करने की चर्चा कर रहे हैं। खबर है कि सीडी में मोदी के निजी सचिव जीसी मुर्मू, एके शर्मा, कुछ मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों की मुलाकातों के रिकॉर्डिंग है.
सोहराबुद्दीन शेख और उनकी पत्नी कौसर बी की हत्या एक और जाना माना फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हुई। मोदी ने एक भाषण में इन हत्याओं को उचित ठहराया, जिससे चुनाव आयोग ने आपत्ति उठाई। एक साल बाद तुलसी प्रजापती - जो सोहराबुद्दीन शेख की हत्या का गवाह था - की हत्या एक और मुठभेड़ में की गई। मार्च 2014 में नए सबूत उभरे हैं कि मोदी स्वयं प्रजापती मुठभेड़ की निगरानी कर रहा था। पीड़ितों के परिवार के एक वकील के अनुसार गुजरात के मुठभेड़ हत्याओं में एक साफ़ पैटर्न है जिसमें बिना किसी सबूत के पीड़ितों को आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है। फ़र्ज़ी मुठभेड़ और मुस्लिम युवाओं की गिरफ़तारी और ग़ैरक़ानूनी कैद द्वारा गुजरात पुलिस ऐसा महौल बनाए रखते है जैसे इस्लामी आतंकवाद का हमेशा खतरा है, और मोदी इससे लोगों की रक्षा कर रहा है।
कई मुठभेड़ के मामले में 2007 से जेल में कैद वरिष्ठ पुलिस अफ़सर डी जी वंज़ारा ने सितंबर 2013 में नौकरी से इस्तीफ़ा दिया। वंज़ारा का कहना था कि पुलिस अफ़सर मुठभेड़ के मामले में सिर्फ़ सरकारी नीति का पालन कर रहे थे, और सरकार नज़दीकी से पुलिस के काम की निगरानी और मार्गदर्शन कर रही थी। उसने ये भी कहा कि वह मोदी को भगवान मानता था, लेकिन मोदी अमित शाह के दुष्ट प्रभाव में आ गया।.