2002 हिंसा में मोदी का क्या हाथ था?
2002 की घटनाओं में मोदी का हाथ होने का काफ़ी सबूत है जिसमें हिंसा के अपराधी, हिंसा में पीड़ित, और पुलिस के बयान भी शामिल हैं। उस समय मोदी ने कई सांप्रदायिक और भड़काऊ भाषण दिए, जो अब इंटरनेट पर देख सकते हैं। तहलका के कई "स्टिंग ऑपरेशन" के दौरान हिंसा में भाग लेने वालों ने बताया कि नरेंद्र मोदी ने राज्य प्रशासन को हिंसा को अनदेखा करने का आदेश दिया। उनका यह भी कहना है कि अगर उसने यह आदेश नहीं दिया होता तो हिंसा असंभव होती। मिसाल, नरोडा पाटिया में खून की होली खेलने वाले बाबू बजरंगी का खुफिया कैमरे से लिया गया यह साक्षात्कार देखें और यहाँ पढें। हिंसकों के दिए कई साक्षात्कार यहाँ जमा हैं।
दो पुलिस अधिकारियों की गवाही के अनुसार गुजरात 2002 नरसंहार में मोदी का हाथ था:
• गुजरात पुलिस के डीआईजी संजीव भट्ट ने कहा कि गोधरा कांड के बाद मोदी ने मुख्यमंत्री निवास में हुई एक बैठक में पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना ग़ुस्सा उतारने का मौक़ा दिया जाना चाहिए। आश्चर्य की बात है कि एसआईटी (विशेष जांच दल - इस सवाल-जवाब में देखिये) के अनुसार ऐसा आदेश देना ज़ुर्म नहीं होगा। गुजरात में भाजपा के नेता और राज्य के पूर्व गृहमंत्री हरेन पांड्या ने भी कंसर्न्ड सिटिज़न्स ट्राइब्यूनल के सामने बयान दिया कि इस बैठक के दौरान मोदी ने ऐसा कहा था। इस बयान के बाद 2003 में पांड्या की हत्या हुई। हालांकि 12 लोगों को 2019 में हत्या के लिए दोषी करार दिया, केस के इतिहास और निर्णय की परिस्थिति के कारण निर्णय में पूरा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है।
• गुजरात के पूर्व डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) आर बी श्रीकुमार ने राज्य सरकार की सहभागिता का बयान दिया है, और यह भी कहा है कि मोदी और उसके प्रतिनिधि ने उसे ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक आदेश दिए थे। बाद में इन आदेशों का पालन न करने पर उसकी पदोन्नति नामंज़ूर की थी।
इन बातों को गुप्त रखने के लिए 2004 में जब नानावती शाह आयोग गुजरात हिंसा की जाँच कर रहा था, तब गुजरात सरकार के प्रतिनिधियों ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि आयोग के सवालों के क्या जवाब दिए जाने चाहिए। आर बी श्रीकुमार ने इस मुलाकात का गुप्त रिकॉर्डिंग किया था।