'दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हो रहे प्रदर्शन के बीच गोली चलाने वाले युवक कपिल बैंसला को दिल्ली की एक अदालत ने जमानत दे दी. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गुलशन कुमार ने शुक्रवार को 25,000 रुपये के मुचलके और इतनी ही जमानत राशि पर कपिल को जमानत दे दी...'
'कर्नाटक के बीदर की एक जिला अदालत ने सीएए विरोधी नाटक करने को लेकर दर्ज हुए राजद्रोह के मामले में शाहीन स्कूल के प्रबंधक सहित कई लोगों को अग्रिम जमानत दे दी है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया राजद्रोह का मामला नहीं बनता है और इसे लेकर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है. अदालत ने यह कहते हुए प्रतिनिधियों को अग्रिम जमानत दी कि सीएए के खिलाफ स्कूल के बच्चों द्वारा किया गया नाटक समाज में किसी भी तरह की हिंसा या असामंजस्य पैदा नहीं करता...'
'सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद को जमानत देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया. जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिन्मयानंद को जमानत देने वाले आदेश में कारण दिए थे और इसलिए इसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है...'
'सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा को कथित तौर पर भड़काने वाले नफरती भाषणों के लिए नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली एक याचिका पर चार मार्च को सुनवाई करने का सोमवार को निर्णय किया. हालांकि, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उसके पास शक्तियां नहीं हैं. द टेलीग्राफ के अनुसार, सीजेआई एसए बोबडे ने वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस से कहा, ‘हम इसे सुनेंगे. लेकिन आपको समझना चाहिए कि हम ऐसी चीजों को रोकने में सक्षम नहीं हैं. हम केवल तभी दखल दे सकते हैं जब ऐसे दंगे हो चुके होते हैं… अदालत कभी भी ऐसी चीजों को नहीं रोक सकती है.’...'
'दिल्ली हाईकोर्ट में दंगों के मामले मामले की बुधवार और गुरुवार की कार्यवाहियों के अंतर ने स्पष्ट कर दिया है कि कैसे अदालत में बेंच की संरचना किसी मामले के नतीजे को प्रभावित कर सकती है, दो अलग-अलग दृष्टिकोणों को भी जन्म दे सकती है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भड़काऊ या नफरत फैलाने वाले भाषणों (हेट स्पीच) के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जानकारी देने के लिए गुरुवार को केंद्र सरकार को एक महीने समय दिया है। आरोपों में कहा जा रहा है कि इन्हीं भाषणों की वजह से दिल्ली में हिंसा भड़की है। हिंसा में कम से कम 35 लोगों की मौत होने और 200 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है। एक दिन पहले, न्यायमूर्ति एस मुरलीधर
'दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मुरलीधर का ट्रांसफर कर दिया गया है। जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली में लगातार बढ़ रही हिंसक गतिविधियों को देखते हुए आधी रात को कोर्ट खोल कर पीड़ितों को जरूरी इलाज मिले यह सुनिश्चित किया और आज दोपहर को उन्होंने सुनवाई करते हुए बीजेपी के तीन नेताओं अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और कपिल मिश्रा पर एफ़आईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे... जस्टिस मुरलीधर कड़े फैसले देने वाले जजों में से माने जाते हैं। उन्होंने हाशिमपुरा नरसंहार मामले, 1984 में हुए सिख दंगों में शामिल रहे सज्जन कुमार के मामले में भी फैसला सुनाया था। अब उनका ट्रांसफर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट कर दिया गया है...'
'नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली में हुए हिंसक प्रदर्शन मामले में दाखिल याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस बीच जस्टिस एस. मुरलीधर को दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया है. जस्टिस मुरलीधर के तबादले पर विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार पर सवाल खड़े किए तो केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जवाब दिया... जस्टिस एस. मुरलीधर ने साल 2003 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की. उन्होंने साल 2004 में 'लॉ, पॉवर्टी एंड लीगल एड: एक्सेस टू क्रमिनिल जस्टिस' नाम की एक किताब भी लिखी है... जस्टिस एस.
'कई पूर्व जजों ने जस्टिस अरुण मिश्रा की पीएम मोदी के लिए की गई तारीफ पर नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट के जज अरुण मिश्रा ने इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए उन्हें काबिल दूरदर्शी और ऐसा 'वर्सेटाइल जीनियस' नेता बताया जो वैश्विक स्तर की सोच रखते हैं...'
'दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नए नागरिकता कानून के विरोध में बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग करती याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि आम आवाजाही के रास्ते में ऐसा प्रदर्शन जारी नहीं रखा जा सकता. अदालत का कहना था, ‘हर कोई ऐसे प्रदर्शन करने लगे तो क्या होगा?’ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रदर्शन को लेकर एक जगह सुनिश्चित होनी चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी...'
'सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये बात दोहराते हुए कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस एल. नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं. यहां तक कि अदालतें ऐसे मामलो में आरक्षण प्रदान करने के लिए राज्यों को निर्देश जारी नहीं कर सकती हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सात जनवरी के एक फैसले में कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है.