'केंद्रीय मंत्री सुरेश अंगड़ी ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती को नकारते हुए बेतुका बयान दिया और कहा कि ट्रेन और एयरपोर्ट फुल हैं, लोगों की शादियां हो रही हैं, इससे साफ पता चलता है कि देश की इकॉनमी अच्छा कर रही है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इसी तरह का बेतुका बयान दिया था और कहा था कि फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर देश में सुस्ती कैसी है?...'
'देश में 2011-2012 और 2017-2018 के बीच नौकरियां घटी हैं. पिछले छह साल के दौरान 90 लाख नौकरियां घटी हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रिपोर्ट को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की तरफ से प्रकाशित किया गया है. इसे संतोष मेहरोत्रा और जेके परिदा ने तैयार किया है. आजाद भारत में पहली बार नौकरियों में इस तरह की गिरावट दर्ज हुई है. मेहरोत्रा और परिदा के मुताबिक, 2011-2012 से 2017-2018 के दौरान कुल रोजगार में 90 लाख की कमी आई है. ऐसा आजाद भारत में पहली बार हुआ है...'
'केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने देश में मंदी की बात से इन्कार करते हुए अजीबोगरीब तर्क दिया है. मुंबई में रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब देश में फिल्में एक-एक दिन में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर मंदी कहां है...'
'2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही विदेशी निवेशकों ने भरोसा दिखाना शुरू कर दिया था। जिसके कारण भारत में 45 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया। अब वह भरोसा डगमगाता नज़र आ रहा है। जून महीने के बाद से निवेशकों ने 4.5 अरब डॉलर भारतीय बाज़ार से निकाल लिए हैं। 1999 के बाद किसी एक तिमाही में इतना पैसा बाहर गया है। इसमें निवेशकों की ग़लती नहीं है। आप जानते हैं कि लगातार 5 तिमाही से भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। 2013 के बाद पहली बार भारत की जीडीपी 5 प्रतिशत पर आ गई है। बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि अगर अर्थव्यवस्था की हालत नहीं सुधरी तो मोदी के पास सिर्फ छह महीने
'सरकार ने भी अब लगभग मान लिया है कि अर्थव्यवस्था का संकट बड़ा है। यही वजह है कि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के नाम पर चौथी बार कॉरपोरेट को राहत दी गई है। सरकार ने शुक्रवार को कई बड़ी घोषणाएं की। इन घोषणाओं में कंपनियों के लिये आयकर की दर करीब 10 प्रतिशत घटाकर 25.17 प्रतिशत करना तथा नयी विनिर्माण कंपनियों के लिये कॉरपोरेट कर की प्रभावी दर घटाकर 17.01 प्रतिशत करना शामिल है। सरकार ने ये कदम ऐसे समय उठाये हैं जब चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर छह साल के निचले स्तर 5 प्रतिशत पर आ गयी है। इन घोषणाओं से निवेश को प्रोत्साहन मिलने तथा रोजगार सृजन को गति मिलने का दावा
'भारत के निर्यात सेक्टर में पिछले चार साल (2014-18) में औसत वृद्धि दर कितनी रही है? 0.2 प्रतिशत. 2010 से 2014 के बीच विश्व निर्यात प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था तब भारत का निर्यात प्रति वर्ष 9.2 प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा था. वहां से घट कर हम 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर पर आ गए हैं. यह मेरा विश्लेषण नहीं है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक सुनील जैन का है. उनका कहना है कि चीन ने 2014-18 के बीच 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि की है. इसका लाभ उठाकर वियतनाम तेजी से इस सेक्टर में अपनी जगह बना रहा है. वियतनाम का निर्यात 13 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ रहा है.
'आज अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने बजट में कमाई और खर्चे के बीच 1 लाख 70 हज़ार करोड़ के अंतर पर सवाल उठाया है. पूछा है कि इतना पैसा बजट के हिसाब से कैसे गायब हो सकता है. क्या सरकार जानबूझ कर कुछ छिपा रही है. प्रोफेसर का कहना है कि 2018-19 के रिवाइज़्ड एस्टिमेट में टैक्स रेवन्यू 14.8 लाख करोड़ था. यह अंतरिम बजट में था जो फरवरी के महीने में चुनाव से पहले पेश किया गया था. जून महीने में सीजीए, कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स ने बताया था कि टैक्स रेवन्यू 13.16 लाख करोड़ ही है. जून में आया यह आंकड़ा लेटेस्ट माना जाता है. इन दोनों में 1.67 लाख करोड़ का है.
'प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने न्यूज़़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के साथ एक साक्षात्कार में गुजरात तथा केरल के विकास मॉडल पर चर्चा किया। उन्होंने वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था में आवश्यक सेवाओं के निजीकरण को सबसे अधिक संकट पैदा करने वाला कारक बताया...'
'पिछले कई बरसों से हम गुजरात मॉडल , इसके झूठ और अधूरे सच से जुड़ी कहानियां सुन-सुन कर थक चुके हैं। यह बात याद रखना जरूरी है राज्य में 2002 के जघन्य मुस्लिम नरसंहार के दाग मिटाने के लिए 2007 के बाद इस मॉडल की बिक्री और और मार्केटिंग शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि दूसरी सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के दौर में सरकार में बैठे बड़े लोग और सत्ता के केंद्र रहे संस्थान अल्पसंख्यक विरोधी पूर्वाग्रह से अछूते थे। 1969 में अहमदाबाद , 1970 और 1984 में बांबे-भिवंडी , 1983 में नेली, 1987 में हाशिमपुरा और 1989 में भागलपुर के बर्बर दंगों के दौरान राजनीतिक संस्थानों के पूर्वाग्रह दिख चुके हैं। लेकिन 2002 म