"यह कहना चाहिए कि भारत की जनता ने एक तानाशाह को चुना है। इस जनता ने किसी एक स्वर्णिम भविष्य या एक शक्तिशाली पिता की खोज में एक खतरनाक दांव चला है। परीक्षा अब उसकी नहीं है, जिसे चुना गया है, क्योंकि वह भी जानता था, जैसे कि उसके चारण, वह एक विराट मिथ्या की सृष्टि है। जिसने यह दांव चला है उसे इसका अहसास होना ही चाहिए कि बाजी वापस हाथ आना इतना आसान न होगा। तो क्या निराश हुआ जाए? पर क्या यह सच नहीं आचार्यप्रवर कि निराश होने का समय बीत चुका है?