'केंद्र सरकार की 'श्रम विरोधी' और 'जन विरोधी' नीतियों के ख़िलाफ़ आज, बुधवार को देशव्यापी आम हड़ताल का व्यापक असर रहा। यह हड़ताल प्रमुख रूप से श्रम सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण के खिलाफ थी। इसमें 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों एटक, सीटू, ऐक्टू, सेवा, एचएमएस, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ यूटीयूसी और इंटक ने हिस्सा लिया। श्रम संगठनों ने इस हड़ताल को ऐतिहासिक बताया है। उनके दावे के मुताबिक इसमें करीब 25 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। यूनियनों की 12 सूत्रीय मांगों में न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दे भी शामिल थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ हड़ताल में शामिल नहीं था, जबकि मजदूरों के साथ कंधा से कंधा मिलाते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश के 250 से ज्यादा किसान संगठन भी भारत बंद में शामिल रहे। किसानों-मजदूरों के साथ एकजुटता दिखाते हुए वामपंथी दलों और उनसे जुड़े छात्र, युवा व महिला संगठनों के लोग बड़ी संख्या में आज सड़कों पर उतरे...'