'11 दिसंबर 2019 को हम बाक़ायदा फ़ासीवादी हिंदू राष्ट्र—हिंदू भारत—में प्रवेश कर गये हैं! इस दिन एक प्रकार से औपचारिक घोषणा संसद में कर दी गयी कि भारत अब समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य नहीं रहा। अब भारत सिर्फ़ हिंदुओं का देश है! देश का संविधान हाथ-पर-हाथ बांधे खड़ा रहा और संसद ने संविधान की प्रस्तावना को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। यह काम खुलेआम संसदीय व संवैधानिक तौर-तरीक़े से किया गया! संविधान की शपथ लेने वाले शासक वर्ग ने संविधान की धज्जियां उड़ा दीं। धर्म के आधार पर भारत की नारिकता देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को, जिसे नागरिकता संशोधन विधेयक (कैबः सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल) के नाम से जाना जाता है, 11 दिसंबर को राज्यसभा ने पास कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पास कर चुकी है। अगले ही दिन राष्ट्रपति ने इस पर दस्तख़त भी कर दिये और उनके दस्तख़त के बाद यह कानून बन गया है। आधुनिक भारत के इतिहास में पहली बार धर्म को नागरिकता के लिए आधार बनाया जा रहा है...'