"जिन लोगों को यह ग़लतफ़हमी थी कि भारतीय जनता पार्टी हिन्दू धर्म और हिन्दुओं की बहुत बड़ी हितैषी है और व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन में शुचिता की हिमायती है, उनकी यह ग़लतफ़हमी अब तो दूर हो जानी चाहिए. उसके शासन वाले राज्य उत्तराखंड में एक संन्यासी गंगा को स्वच्छ किये जाने और अवैध खनन को रोके जाने की मांग को लेकर अनशन करता रहा लेकिन पार्टी और सरकार के कान पर जूँ तक न रेंगी. गंगा का सभी भारतवासियों, विशेष रूप से हिन्दुओं, के लिए भावनात्मक महत्व है. अनशन भी शासन के विरोध में नहीं बल्कि एक सकारात्मक मांग को उठाने के लिए किया गया था. लेकिन स्वामी निगमानंद न तो राज्य सरकार का ध्यान अपनी ओर खींच पाए और न ही मीडिया का. जब उनकी ओर ध्यान गया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.पंजाबी सूबे की मांग को लेकर अनशन करने वाले दर्शन सिंह फेरुमान की मृत्यु के बाद शायद यह पहला अवसर है जब किसी ने अनशन के कारण प्राण त्यागे हैं..."