'प्रसिद्ध इतिहासकार द्विजेंद्र नारायण झा ने आरंभिक भारतीय इतिहास में भौतिक संस्कृति पर अध्ययन की शुरुआत की. अपने 35 वर्षों के अकादमिक करिअर में उन्होंने प्राचीन भारतीय समाज और अर्थव्यवसथा पर विस्तृत शोधकार्य किया और आरंभिक मध्यकालीन भारत में सामंतवाद के विभिन्न आयामों की जांच की. एक पेशेवर इतिहासकार के तौर पर उन्होंने ऐतिहासिक अध्ययनों से प्रासंगिकता हासिल करनेवाली समकालीन राजनीतिक बहसों में सक्रिय हस्तक्षेप किया है. इस प्रक्रिया में वे कई बार हिंदुत्ववादी संगठनों के निशाने पर आए. मिसाल के लिए जब उनकी किताब द मिथ ऑफ द होली काऊ ने प्राचीन भारत में गोमांस खाने की उपमहाद्वीपीय खानपान की आदतों का संदर्भ पेश किया, तब वे उन सभी लोगों का निशाना बन गए, जिन्हें उनका निष्कर्ष नागवार गुजरा था. उन्होंने हमेशा मिथकों के ऊपर ऐतिहासिक तथ्यों को तरजीह दी है और ऐसा करते हुए वे ज्यादातर समय सत्ताधारियों की आंखों की किरकिरी बने...'