"कॉरपोरेट मीडिया की दुनिया में इससे बड़ा विस्फोट अब तक नहीं हुआ था। देश का सबसे बड़े मीडिया समूह (नेटवर्क-18) को देश के सबसे बड़े उद्योगपति ने सबसे बड़ी बोली लगाकर खरीद लिया। गुरुवार को यह खबर आई कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के बोर्ड ने समूह से जुड़ी इंडिपेन्डेन्ट मीडिया ट्रस्ट को चार हजार करोड़ रूपया खर्च करने की अनुमति प्रदान कर दी जिसका इस्तेमाल नेटवर्क-18 खरीदने के लिए किया जाएगा। बोर्ड की मंजूरी के साथ ही शुरूआत हो गई और नेटवर्क-18 के संस्थापक राघव बहल ने समूह से जुड़े सभी कर्मचारियों को एक ईमेल लिखकर शुभकामना प्रेषित किया है..."
"मतदान से कुछ दिन पहले हुए इस खास आयोजन में कॉरपोरेट-कप्तानों ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का न केवल समर्थन किया, बल्कि देशवासियों के समक्ष यह तर्क भी पेश किया कि सिर्फ मोदी साहब ही इस वक्त देश को आगे ले जा सकते हैं. कुछ बड़े उद्योगपतियों ने चैनलों को दिये अलग-अलग साक्षात्कारों में मोदी का समर्थन किया. यह सारे कॉरपोरेट-कप्तान बड़े विज्ञापनदाता भी हैं... कई चरणों में लंबे समय तक चली चुनाव प्रक्रिया के दौरान मालदार नेताओं और ताकतवर राजनीतिक दलों ने अपने कॉरपोरेट-संपर्कों और साधनों के बल पर अपने पक्ष में जन-मानस बनाने में मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया.
"कमोबेश पूरे आम चुनाव के दौरान मीडिया ने मोदी के हर कदम पर विजय दुन्दुभि बजायी, उससे एक बात साफ हो गई है कि मीडिया की तरफ से मोदी प्रधानमंत्री नियुक्त किये जा चुके हैं। हालाँकि भारत की जनता के मन में जो होता है, वह अक्सर मीडिया की पकड़ के बाहर रह जाता है..."
"नरेंद्र मोदी और उनकी पिछलग्गू मीडिया ही नहीं, बल्कि इनके प्रभाव में सवर्ण मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा अक्सर यह कहता नजर आता है कि जो मॉडल गुजरात में विकास के लिए अपनाया गया, वह पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए। हालांकि न खुद मोदी, न मीडिया और न ही उनके समर्थक कभी यह बताते हैं कि आखिर यह मॉडल है क्या और किस तरह से बाकी देश में अपनाई जा रही नीतियों से जुदा है। मोटे तौर पर उनका दावा होता है कि इससे विकास की गति बढ़ गई है, विदेशी निवेश में तेजी आई है, मूलभूत सुविधाएं सर्वसुलभ हो गई हैं और गरीबी में कमी आई है। यही नहीं उनका यह भी कहना है कि इसकी सहायता से भ्रष्टाचार में भी कमी आई है। ये बातें अंति
"टीवी चैनल्स लगातार चुनावी ख़बर परोस रहे हैं! ये कोई बड़ी बात नहीं है! बड़ी खबर ये है कि वोटों के ध्रुवीकरण की तर्ज़ पर अब न्यूज़ चैनल्स का भी ध्रुवीकरण हो चला है, जिसका विशुद्ध पैमाना आर्थिक लें-दें है! अपनी - अपनी "सरंक्षक" पार्टियों के प्रति "वफादारी" का परिचय ये चैनल्स खुल कर दे रहे हैं! इन चैनल्स को ध्यान से देखें और उनकी भाषा पर ध्यान दें तो समझ में आ जाएगा कि "पेड" न्यूज़ को कूटनीतिक तौर पर कैसे "नॉन-पेड" न्यूज़ का अमली जामा पहनाया जा रहा है..."
"नरेंद्र भाई मोदी स्वयं एक पासपोर्ट साइज फोटो (चेहरे) में बदल चुके हैं. उनका यह फोटो आपको टेलीविजनी परदे पर भाजपा के चुनावी विज्ञापनों से भी ज्यादा समाचारों में दिखता है. इस फोटो का एक संदेश (विचार) है. इसे विकास कहा जा रहा है. एक व्यक्ति के चेहरे पर चस्पा कर दिये गये विकास के इस विचार को सवा अरब की आबादी वाले राष्ट्र का एकमात्र विचार कहा जा रहा है. ऐसे में भारत-भक्त होने का अनिवार्य अर्थ हो चला है मोदी-भक्त होना..."
"आज सारा कॉरपोरेट मीडिया—प्रिंट हो या ऑडियो विजुअल—एक सुर में राग अलाप रहा है कि ‘गुजरात मॉडल’ ही वह मॉडल है जो देश को विकास के रास्तों पर ले जा सकता है। गोया सारी कठिनाईयों को पार करने का एक मात्र रास्ता ‘गुजरात मॉडल’ और बकौल नरेंद्र मोदी ‘गुड गवर्नेंस’ उर्फ अच्छे प्रशासन को अपनाना ही है...
"अपने दमदार खुलासों के लिए जानी जाने वाली वेबसाइट विकीलीक्स ने कहा है कि उसके केबल में कभी भी किसी अमेरिकी डिप्लोमैट ने बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को 'ईमानदार' नहीं कहा था। विकीलीक्स ने सोमवार तड़के किए गए ट्वीट की सीरीज में 2011 में आए अपने केबल पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इसमें कभी नहीं कहा गया था मोदी 'भारत के एकमात्र ईमानदार नेता' हैं..."
"लगता है इस वर्ष के मध्य में होने जा रहे लोकसभा चुनाव ऐसे कई परिवर्तनों की शुरुआत करने वाले हैं जिनसे भारतीय लोकतंत्र का चेहरा निर्णायक रूप से बदल जाएगा. यह पहले से ही सांप्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रीयता के संकट में चल रहे भारतीय लोकतंत्र के संकट को घटाने की जगह और बढ़ा देगा... इस पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें प्रचार की जबर्दस्त भूमिका रहती है और उसके लिए पैसा जरूरी होता है. कहने की जरूरत नहीं कि यह पैसा पूंजीपतियों के द्वारा दिया जाता है. राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने की वैधता के चलते कुछ छिपा भी नहीं रहता.