'जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुप्त चंदे की योजना से पर्दा उठाया था तब उन्होंने दावा किया था, “दानदाताओं ने चेक या अन्य पारदर्शी तरीकों से चंदा देने में अनिच्छा जताई है. इससे उनकी पहचान जाहिर हो जाएगी और उनके ऊपर नकारात्मक दबाव बढ़ेगा.’’ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों द्वारा बार-बार उन बेनाम दाताओं का नाम छुपाने के तर्क को जायज ठहराया गया है. गुरुवार 21 नवंबर 2019 को मोदी सरकार के वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने हमारे इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े खोजी रिपोर्ट के संबंध में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में दोहराई.
'अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने विभिन्न आंकड़ों को लेकर एक बार फिर सरकार को घेरा है। दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने सरकार से उपभोक्ता व्यय सर्वे 2017-18 समेत NSSO के सभी आंकड़े और रिपोर्ट जारी करने की अपील की है। उपभोक्ता व्यय सर्वे (Consumer Expenditure Survey) का काम राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (NSSO : National Sample Survey Office ) ने पूरा किया है। मीडिया में लीक रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे में औसत उपभोक्ता खपत में तीव्र गिरावट को दिखाया गया है। सर्वे के परिणाम को जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह अर्थव्यवसथा में नरमी के अन्य साक्ष्यों का स
'आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीति दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया... '
'वित्त मंत्रालय ने नियमों का उल्लंघन करते हुए एक अज्ञात चंदादाता को 10 करोड़ रुपए के एक्सपायर हो चुके इलेक्टोरल बॉन्ड को एक अज्ञात राजनीतिक दल के खाते में जमा करवाने में मदद की. यह घटना कर्नाटक विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मई 2018 की है. इससे संबंधित दस्तावेज हमारे पास मौजूद हैं. वित्त मंत्रालय ने यह क़दम एक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि की तरफ से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर डाले जा रहे जबाव के बाद किया. एसबीआई, जो इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का संचालन करती है, उसने ये एक्सपायर बॉन्ड स्वीकार कर लिया. ये बॉन्ड खरीदे क्यों गए?
'...सभी बॉन्ड पर एक गोपनीय नंबर दर्ज होता है जो आंखों से आमतौर पर नहीं दिखता. हर बार एक से दूसरे को हस्तांतरित होने के वक्त इस गोपनीय नंबर को ट्रैक किया जाता है. वित्त मंत्रालय ने एसबीआई को इस बाबत गोपनीय नंबर की व्यवस्था को बनाने का निर्देश दिया था. इलेक्टोरल बॉन्ड के रेगुलेशन के लिए बनी व्यवस्था के तहत एसबीआई बाध्य है कि अगर कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार संस्थाएं चाहें तो इसे उनसे साझा किया जाय. इनमें से कुछ संस्थाएं मसलन सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के ऊपर के हाल कि दिनों में इस बात का आरोप लगता रहा है कि वो अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर विपक्षी पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है.
'2 जनवरी, 2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के नियमों को आधिकरिक रूप से जारी किया. दो महीने बाद ही इन नियमों में प्रधानमंत्री कार्यालय के दिशा-निर्देश में हेरफेर करके इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री को अनुमति दी गई. गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रिजर्व बैंक, चुनाव आयोग और देश के समूचे प्रतिपक्ष के मुखर विरोध के बावजूद लागू किया गया. इसके जरिए भारत की राजनीति में बड़े व्यापारिक घरानों के घुसपैठ को वैधता प्रदान कर दी गई और ऐसे तमाम लोगों को गुमनाम रहते हुए राजनीतिक दलों को चंदा देने का रास्ता खोल दिया गया.
Submitted by narendramodifacts on Thu, 11/07/2019 - 00:00
इस सवाल का जवाब देने से पहले हमें पूछना पड़ेगा: भ्रष्टाचार आखिर है क्या? "भ्रष्टाचार" शब्द की कई परिभाषाएँ मिलती हैं, पर सब के लगबग एक ही अर्थ है. विकिपीड़ीया के अनुसार[1] भ्रष्टाचार "सत्ता होने वाले लोगों के द्वारा बेईमान या धोखाधड़ी का आचरण" है. मतलब अगर सत्ताधारी लोग कोई फ़ायदे के लिए सत्ता का दुरुपयोग करे तो इसे हम भ्रष्टाचार कह सकते हैं.
'मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने कम से कम 12,313 चुनावी बॉन्ड बेचे, जिनकी कुल कीमत 6,128 करोड़ रुपये है. देश में चुनावी बॉन्ड बेचने के लिए एसबीआई एकमात्र अधिकृत संस्था है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक विश्लेषण के बाद इसका खुलासा किया है. एडीआर एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) है जो चुनावी और राजनीतिक सुधार के क्षेत्र में काम करती है... मोदी सरकार ने मार्च 2018 में राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे के विकल्प के तौर पर चुनावी बॉन्ड को पेश किया था.
'श्रीवास्तव समूह- कश्मीर में यूरोपीय सांसदों के दल के दौरे को कथित रूप से फंड देने वाले एक छोटा-से संगठन इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर नॉन-अलाइंड स्टडीज (आईआईएनएस) के पीछे है, जिसकी कई सारी कंपनियां हैं. रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) की फाइलिंग दिखाती हैं कि ये कंपनियां न के बराबर बिजनेस करती हैं. अपनी वेबसाइट पर समूह बताता है कि वह ‘देश के प्राकृतिक संसाधनों, स्वच्छ ऊर्जा, एयरस्पेस, परामर्श सेवाओं, हेल्थकेयर, प्रिंट मीडिया और प्रकाशन में रुचि रखने वाले और तेजी से बढ़ रहे व्यावसायिक घरानों’ में से एक है.