"एक धार्मिक राष्ट्र के तौर पर अपना सफ़र शुरू करने वाला पाकिस्तान एक बार टूटकर आज फिर से विनाश के कगार पर खड़ा है। उसके पतन का मुख्य कारण राजनीति को धर्म के अधीन करना है... आज़ादी के 67 साल बाद भारत भी इस पाकिस्तानी अंदाज़ के रास्ते पर चलना तय करता है तो यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी त्रासदी होगी..." (और पढ़ें.)
ऑल इंडिया सेक्यूलर फोरम के सचिव डॉ राम पुनियानी ने कहा है कि सांप्रदायिक दंगों के पीछे सांप्रदायिक राजनीति होती है. इसका किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं. कुछ लोग चाहते हैं कि सत्ता का विकेंद्रीकरण नहीं हो. गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को पीछे धकेलने के लिए दंगे कराये जाते हैं. हिंसा की शुरुआत हथियारों से नहीं, विचारों से होती है. पूरे दक्षिणी एशिया में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलायी जा रही है.
"हिन्दू राष्ट्रवाद बनाम भारतीय राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बहस नई नहीं है. औपनिवेशिक दौर में, जब आजादी का आंदोलन, भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा और उसके मूल्यों को स्वर दे रहा था तब हिन्दुओं के एक तबके ने स्वयं को स्वाधीनता संग्राम से अलग रखा और हिन्दू राष्ट्रवाद और उससे जुड़े हुए मूल्यों पर जोर दिया। यह बहस एक बार फिर उभरी है. इसका कारण है भाजपा.एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बतौर स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए आतुर नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया एक साक्षात्कार (जुलाई, 2013) जिसमें उन्होंने कहा कि वे हिन्दू पैदा हुए थे और वे राष्ट्रवादी हैं, इसलिए वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं!
"इस वर्ष चौदह फरवरी को छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में ‘मातृ-पितृ पूजन’ दिवस मनाया गया। इसमें वैसे बहुत आपत्ति की बात नहीं होती, मगर यह दिन मनाने की योजना वेलेंटाइन दिवस के मुकाबले बनाई गई और अल्पसंख्यक स्कूलों की भावना का बिना खयाल किए उनसे भी अपेक्षा की गई कि वे इस दिन को इसी तरह मनाएं. इसके पहले मध्यप्रदेश और गुजरात के स्कूलों में सूर्य नमस्कार और मध्यप्रदेश में गीता सार की पढ़ाई को इसी तरह अनिवार्य बनाने की कोशिश हुई थी.