'प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने न्यूज़़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के साथ एक साक्षात्कार में गुजरात तथा केरल के विकास मॉडल पर चर्चा किया। उन्होंने वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था में आवश्यक सेवाओं के निजीकरण को सबसे अधिक संकट पैदा करने वाला कारक बताया...'
'पिछले कई बरसों से हम गुजरात मॉडल , इसके झूठ और अधूरे सच से जुड़ी कहानियां सुन-सुन कर थक चुके हैं। यह बात याद रखना जरूरी है राज्य में 2002 के जघन्य मुस्लिम नरसंहार के दाग मिटाने के लिए 2007 के बाद इस मॉडल की बिक्री और और मार्केटिंग शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि दूसरी सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के दौर में सरकार में बैठे बड़े लोग और सत्ता के केंद्र रहे संस्थान अल्पसंख्यक विरोधी पूर्वाग्रह से अछूते थे। 1969 में अहमदाबाद , 1970 और 1984 में बांबे-भिवंडी , 1983 में नेली, 1987 में हाशिमपुरा और 1989 में भागलपुर के बर्बर दंगों के दौरान राजनीतिक संस्थानों के पूर्वाग्रह दिख चुके हैं। लेकिन 2002 म
"गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के 16 आदिवासी गांवों के करीब 125 लड़के-लड़कियां रोजाना जान पर खेलकर स्कूल जाते हैं। ये बच्चे सुबह सात बजे करीब 600 मीटर चौड़ी हीरन नदी को पार करते हैं और गीले होकर स्कूल पहुंचते हैं। नदी पार करने के लिए पीतल के एक बड़े बर्तन का सहारा लिया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में 'गोहरी' कहा जाता है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रशासन की लापरवाही की वजह से बच्चों को यह खतरनाक कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है। पिछले सात साल से नदी पर पुल बनाने का वादा किया जा रहा है, लेकिन अभी तक इसे पूरा नहीं किया गया है।..."
"देश में डिवेलपमेंट के गुजरात मॉडल का प्रचार करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के गुजरात सीएम के कार्यकाल में बहुत गरीबों को सरकारी कोटे से मिलने वाले सस्ते अनाज से वंचित होना पड़ा। गुजरात विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट और भी ऐसे कई खुलासे कर रही है, जिससे गुजरात मॉडल को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार गुजरात सरकार द्वारा 2008 से 2013 के बीच सब्सिडी वाले गेहूं और चावल की खरीद में कमी की वजह से लाभार्थी केंद्र द्वारा आवंटित अनाद से वंचित रह गए। इससे गुजरात को 2,652 करोड़ रुपए की सब्सिडी का भी नुकसान हुआ..."
"सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की खबर मिलते ही इसका विरोध शुरू हो गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को बढ़ाना गैरकानूनी बताया है। साथ ही केंद्र सरकार के इस फैसले को नर्मदा घाटी को डूबोने वाला फैसला करार दिया है। नबआं के अनुसार इस तरह से केंद्र सरकार पुनर्वास और पर्यावरणीय शतोंü का उल्लंघन नहीं कर सकती है.
"गुजरात के 50 किसानों का एक जत्था मोदी के विकास मॉडल पर हमला बोलने के लिए बनारस पहुंचा है। ये किसान आप प्रत्याशी अरविंद केजरीवाल की सभाओं में वहां के किसानों की बदहाली के बारे में बता रहे हैं। केजरीवाल को बनारस के ग्रामीण इलाकों में समर्थन मिलता दिख रहा है, क्योंकि ग्रामीण उन्हें अपने घर बुलाने लगे हैं..."
"नरेंद्र मोदी और उनकी पिछलग्गू मीडिया ही नहीं, बल्कि इनके प्रभाव में सवर्ण मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा अक्सर यह कहता नजर आता है कि जो मॉडल गुजरात में विकास के लिए अपनाया गया, वह पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए। हालांकि न खुद मोदी, न मीडिया और न ही उनके समर्थक कभी यह बताते हैं कि आखिर यह मॉडल है क्या और किस तरह से बाकी देश में अपनाई जा रही नीतियों से जुदा है। मोटे तौर पर उनका दावा होता है कि इससे विकास की गति बढ़ गई है, विदेशी निवेश में तेजी आई है, मूलभूत सुविधाएं सर्वसुलभ हो गई हैं और गरीबी में कमी आई है। यही नहीं उनका यह भी कहना है कि इसकी सहायता से भ्रष्टाचार में भी कमी आई है। ये बातें अंति
"अहमदाबाद से क़रीब 400 किलोमीटर दूर गुजरात के सौराष्ट्र इलाक़े यानी जामनगर, जूनागढ़ और राजकोट जैसे ज़िलों में पिछले 10 साल में किसानों की आत्महत्या की दर सबसे ज़्यादा रही है. भारत के कई गांवों की ही तरह गुजरात के इन इलाक़ों में सिंचाई के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं है और नहरें नहीं बनाई गई हैं, इसलिए अच्छी फ़सल के लिए किसान बारिश पर ही निर्भर हैं. कम बारिश की भरपाई के लिए कुंआ खोदकर पानी निकाला जा सकता है लेकिन अगर सरकारी बिजली कनेक्शन न हो तो ये किसान के ख़र्चे को कई गुना बढ़ा देता है..."
"भाजपा ने अपना अश्वमेध वाला घोड़ा सिकंदर महान की तरह भारत विजय अभियान के नाम पर छोड़ दिया है. कहता है भारत विजय किए बिना मानने वाला नहीं. पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा का ‘फील गुड‘ और ‘इंडिया शाइनिंग‘ का नारा फील बैड और कांग्रेस शाइनिंग में तब्दील हो गया. उससे सबक लेकर भाजपा बल्कि संघ परिवार ने गुजरात मॉडल के विकास को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का खुद में जोश भर लिया है.