'आगरा केंद्रीय कारागार ने एक आरटीआई आवेदक को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद राज्य से यहां लाए गए कैदियों की जानकारी देने से मना कर दिया है. जानकारी नहीं देने के पीछे किसी व्यक्ति की सुरक्षा को खतरे में डाल सकने वाली सूचना और ‘तीसरे पक्ष’ की सूचना देने से छूट वाले प्रावधान का हवाला दिया गया है. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव से जुड़े आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक के प्रश्नों के जवाब में आगरा जेल के अधिकारियों ने जम्मू कश्मीर से लाए गए कैदियों के बारे में सूचना देने से इनकार कर दिया...'
'उत्तर प्रदेश के हापुड़ के पिलखुआ थाना क्षेत्र में रविवार शाम पुलिस हिरासत में 35 वर्षीय सिक्योरिटी गार्ड प्रदीप तोमर की मौत हो गई। आरोप है कि प्रदीप तोमर की मौत पुलिसिया पिटाई और यातना से हुई। बताया जा रहा है कि इस घटना के तार पिलखुआ थाना क्षेत्र के लाखन गाँव में 30 अगस्त को एक महिला के शव बरामद होने की पुलिस जांच से जुड़े हैं। इस मामले में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। मृतका, प्रदीप तोमर के साले की पत्नी थी और पुलिस को शक था कि इस हत्या के पीछे प्रदीप का भी हाथ है। इस सिलसिले में पुलिस ने रविवार की शाम प्रदीप के छोटे भाई कुलदीप तोमर को फोन करके पिलखुआ बुलाया और उसे हिरासत में ले
'उत्तर प्रदेश के पीलीभीत ज़िले के एक प्राइमरी स्कूल का मामला. हेडमास्टर ने कुछ लोगों पर मामले को सांप्रदायिक रंग देने का आरोप लगाते हुए अपने निलंबन को अन्यायपूर्ण बताया है. उनके अनुसार, उन्होंने अल्लामा इकबाल की उस कविता का पाठ कराया है जो सरकारी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल है... इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीसलपुर बीईओ उपेंद्र कुमार की जांच के अनुसार प्रधानाध्यापक फुकरान अली द्वारा बच्चों से 1902 में मोहम्मद इकबाल की लिखी कविता ‘लब पे आती है दुआ’ का पाठ कराया जा रहा था. इकबाल को अल्लामा इकबाल के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा’ जैसे गीत लिखे हैं...'
'2017 अगस्त को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में एक के बाद एक हुई 70 बच्चों की मौत ने उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मुखिया तथा गोरखपुर के कई बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को मीडिया और जनता के गुस्से का निशाना बना दिया था. पूर्वांचल के बच्चों पर दिमागी बुखार और जापानीज़ एंसेफलाइटिस पिछले कई वर्षों से बरसात के महीनों में अपना कहर ढाते रहे हैं. इसकी रोकथाम के लिए जरूरी प्रयासों और पर्याप्त उपाय न किए जाने को लेकर एक सांसद के रूप में योगी आदित्यनाथ ने संसद तक में आवाज उठाई थी.
'उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज के निलंबित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान के खिलाफ अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार और कर्तव्य पालन में घोर लापरवाही करने के आरोपों पर जांच करने का आदेश दिया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त, 2017 के दौरान ऑक्सीजन की कमी से 60 से ज्यादा बच्चों की मौत होने के बाद कफील खान पर भ्रष्टाचार और चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप लगाए गए थे. इन्हीं आरोपों के कारण कफील खान को नौ महीने जेल में रहना पड़ा था. हालांकि एक आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता वाली जांच समिति ने पाया कि डॉ. खान मौतों के लिए दोषी नहीं थे.
'आज फिर दादरी के बुजुर्ग अख़लाक़ की याद आई है। आज उनकी हत्या हुए पूरे चार साल हो गए हैं, लेकिन इंसाफ़ अभी न सिर्फ़ बाक़ी है, बल्कि बहुत दूर भी दिखता है। चार साल बाद भी अभी आरोपियों पर आरोप तय नहीं हुए हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि लिंचिंग के मामले में 6 महीने में केस तय हो जाना चाहिए। अब अख़लाक़ के वकील सुप्रीम कोर्ट से उसी का आदेश लागू करवाने के लिए अवमानना का मामला दायर करने जा रहे हैं...'
'गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सिजन की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मौत के मामले में दो साल से निलंबित चल रहे डॉ. कफील खान के लिए राहत की खबर है। एक विभागीय जांच ने उन्हें चिकित्सा लापरवाही, भ्रष्टाचार के आरोपों और हादसे के दिन अपना कर्तव्य नहीं निभाने के आरोपों से मुक्त कर दिया। गुरुवार को बीआरडी अधिकारियों ने रिपोर्ट की एक कॉपी डॉ. कफील को सौंपी है। बता दें कि कफील ने इन आरोपों के लिए 9 महीने जेल में बिताए थे। अब करीब दो साल बाद वह इन आरोपों से मुक्त हुए हैं। जमानत पर बाहर आने के बावजूद डॉ.
'शाहजहांपुर केस में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर आरोप लगाने वाली लड़की को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। लड़की पर चिन्मयानंद से उगाही करने का आरोप था। एक वीडियो के आधार पर लड़की और उसके तीन साथियों पर पुलिस ने केस दर्ज किया था...'
'"बलात्कार के मामलों में केवल एक प्रतिशत पीड़ित पक्ष अभियुक्त के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज कराता है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के 99 प्रतिशत मामलों में पीड़ित पक्ष मुक़दमा दर्ज ही नहीं कराता है। केवल एक प्रतिशत दर्ज होने वाले मामलों में भी अधिकतर अभियुक्त बिना किसी सज़ा के बरी हो जाते हैं।" वरिष्ठ अधिवक्ता रेनु मिश्रा कहती हैं कि बलात्कार के मामलों में आँकड़े चौंकाने वाले हैं। बलात्कार की शिकार 100 में से सर्फ़ एक पड़िता अपने विरुद्ध हुए अत्याचार का मुक़दमा दर्ज करती है। इस एक प्रतिशत में भी सज़ा सिर्फ़ 28 प्रतिशत अपराधियों को सज़ा होती है। बाक़ी 72 प्रतिशत कमज़ोर होने के कारण रिहा हो जाते हैं।
'15 सितंबर को, एक 23-वर्षीय दलित युवक अभिषेक पाल के मोबाइल पर एक टैक्सट मैसेज आया। यह मैसेज एक महिला का था जिसने उसके साथ रिलेशनशिप कायम करने की बात कही थी। युवक उसके घर चला गया जहां महिला के परिजनों ने उसे बंधक बना लिया। इसके बाद जो हुआ वह दिल दहला देने वाला है। गाँव के बच्चे भी कहते हैं कि अभिषेक पाल को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह दलित था...'