"... हरेक की जिन्दगी में ऐसे लमहे आते हैं जब हम वाकई अपने आप को दिग्भ्रम में पाते हैं, ऐसी स्थिति जिसका आप ने कभी तसव्वुर नहीं किया हो। ऐसी स्थिति जब आप के इर्दगिर्द विकसित होने वाले हालात के बारे में आप के तमाम आकलन बेकार साबित हो चुके हों, और आप आप खामोश रहना चाहते हों, अपने इर्दगिर्द की चीजों के बारे में गहन मनन करना चाहते हों, अवकाश लेना चाहते हों, मगर मैं समझता हूं कि यहां एकत्रित लोगों के लिए - कार्यकर्ताओं, प्रतिबद्ध लेखकों - ऐसा कुछ भी मुमकिन नहीं है। जैसा कि अपनी एक छोटी कविता में फिलीपिनो कवि एवं इन्कलाबी जोस मारिया सिसोन लिखते हैं
"एक व्यक्ति के चार बेटे थे। पहला बेटा डाक्टर था, दूसरा वकील था, तीसरा इंजीनियर और चौथा कोई अवैध काम करता था। डाक्टर और वकील की प्रैक्टिस सामान्य थी व इंजीनियर नौकरी पाने के लिए भटक रहा था। चौथा बेटा घर में सबसे ज्यादा सम्मानित और प्रिय था क्योंकि घर उसी की कमाई से चल रहा था। भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने चौथे बेटे को अपना सबसे ऊंचा पद देते हुये तर्क दिया है कि उसने पिछले आम चुनाव में उत्तरप्रदेश का प्रभावी रहते हुए पार्टी को अस्सी में से इकहत्तर और सहयोगी दल की दो सीटें मिला तिहत्तर सीटें जिता कर केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली पहली भाजपा सरकार बनवायी है। इसी काम के पुरस्कार स्वरूप उन्हें पार्
"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश भर के प्रचारकों से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मोदी सरकार बनाकर एक लक्ष्य हम प्राप्त कर चुके हैं, पर अब इससे बड़ी चुनौती मौजूदा वोटबैंक को बरकरार रखने की है. आनुषांगिक संगठनों की बैठक के उद्घाटन सत्र में भागवत ने कहा कि अब नए लक्ष्य के लिए काम शुरू करें। जिन लोकसभा क्षेत्रों में पहली बार विजयी हुए हैं उन पर खास फोकस किया जाए। पांच साल के लिए एक कार्ययोजना बनाएं और गांव से लेकर जिले तक स्वयंसेवकों की टीम बनाकर उसकी मानीटरिंग की जाए। लोगों से जीवंत संपर्क बनाकर उनका विश्वास जीता जाए..."
"लोकसभा चुनावों के नतीजे आए कई दिन बीत चुके हैं। चुनाव बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा है कि अब 'केंद्र में राष्ट्रवादी सरकार बनाने का काम' पूरा हो चुका है और स्वयंसेवकों को अब अपने इलाकों में संघ के क्रियाकलापों में जुट जाना चाहिए। उन्होंने स्वयंसेवकों को समझाया था कि संघ के आदर्श बड़े हैं और सिर्फ सत्ता हासिल करना उसका लक्ष्य नहीं है। लेकिन, लगता है कि संघ के स्वयंसेवक शायद उनकी बात ठीक से नहीं समझ पाए हैं.
"आसनसोल से भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो ने दावा किया है कि उन्हें योग गुरू बाबा रामदेव की सिफारिश पर लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा का टिकट मिला था। सुप्रियो ने पश्चिम बंगाल के प्रमुख समाचार पत्र आनंद बाजार पत्रिका के लिए लिखे लेख में यह दावा किया है। लेख का पहला हिस्सा प्रकाशित हो चुका है। सुप्रियो ने लेख डायरी के रूप में लिखा है। सुप्रियो ने लिखा है कि 28 फरवरी को फ्लाइट में वह बाबा रामदेव के बगल वाली सीट पर बैठे हुए थे। सुप्रियो ने बाबा रामदेव को किसी के साथ टिकट वितरण पर बात करते हुए सुना। सुप्रिया ने बाबा रामदेव से कहा,मैं भी टिकट चाहता हूं। अगर आपने मुझे टिकट नहीं दिया तो मैं मीडिया को बता द
"अब इस आधार पर कि लोगों ने भाजपा की अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा वोट उसे दिया है और नरेंद्र मोदी ने ‘अधिकतम प्रशासन’ की शुरुआत कर दी है, बहुत सारे लोग यह सोच रहे थे कि हिंदुत्व के पुराने खेल की जरूरत नहीं पड़ेगी. अपने हाव-भाव और भाषणों के जरिए मोदी ने बड़ी कुशलता से ऐसा भ्रम बनाए भी रखा है. इसके नतीजे में मोदी के सबसे कट्टर आलोचक तक गलतफहमी के शिकार हो गए हैं. यहां तक कि जिन लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया है, उनमें से भी कइयों को ऐसा लगने लगा है कि मोदी शायद कारगर साबित हों.
"यह कहना चाहिए कि भारत की जनता ने एक तानाशाह को चुना है। इस जनता ने किसी एक स्वर्णिम भविष्य या एक शक्तिशाली पिता की खोज में एक खतरनाक दांव चला है। परीक्षा अब उसकी नहीं है, जिसे चुना गया है, क्योंकि वह भी जानता था, जैसे कि उसके चारण, वह एक विराट मिथ्या की सृष्टि है। जिसने यह दांव चला है उसे इसका अहसास होना ही चाहिए कि बाजी वापस हाथ आना इतना आसान न होगा। तो क्या निराश हुआ जाए? पर क्या यह सच नहीं आचार्यप्रवर कि निराश होने का समय बीत चुका है?
"...मीडिया के बड़े हिस्से को खरीद कर, तमाम किस्म के ऊलजलूल झूठ बोल कर, कहीं विकास का झांसा, कहीं मुसलमानों को भरोसा तो कहीं डर दिखा कर, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन (राजग) ने सबसे अधिक सीटें जीत लेने का शोर मचाया हुआ है... ऐसे में लोकतांत्रिक ताकतों के लिए सबक क्या हैं?...
"मतदान से कुछ दिन पहले हुए इस खास आयोजन में कॉरपोरेट-कप्तानों ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का न केवल समर्थन किया, बल्कि देशवासियों के समक्ष यह तर्क भी पेश किया कि सिर्फ मोदी साहब ही इस वक्त देश को आगे ले जा सकते हैं. कुछ बड़े उद्योगपतियों ने चैनलों को दिये अलग-अलग साक्षात्कारों में मोदी का समर्थन किया. यह सारे कॉरपोरेट-कप्तान बड़े विज्ञापनदाता भी हैं... कई चरणों में लंबे समय तक चली चुनाव प्रक्रिया के दौरान मालदार नेताओं और ताकतवर राजनीतिक दलों ने अपने कॉरपोरेट-संपर्कों और साधनों के बल पर अपने पक्ष में जन-मानस बनाने में मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया.
"बसपा अध्यक्ष मायावती और तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव के बाद भाजपा नीत राजग से किसी भी तरह के गठबंधन की संभावनाओं को शुक्रवार को पूरी तरह खारिज कर दिया..."