'सेना प्रमुख बिपिन रावत द्वारा उदारवादी संवेदनाओं पर किए गए प्रहार की जमकर आलोचना हो रही है। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शनों में शामिल छात्रों, राजनेताओं और दूसरे लोगों के ख़िलाफ़ टिप्पणी की थी। रावत का मूल तर्क था कि प्रदर्शनकारियों का हिंसा की तरफ़ बढ़ना ग़लत है, इसकी आड़ में उन्होंने अपनी बात रखी थी। यह जनरल की पहली राजनीतिक टिप्पणी नहीं है। सवाल उठता है कि आख़िर वे यह सब कहाँ से ला रहे हैं। दरअसल जनरल जानते हैं कि वे ऐसी टिप्पणी कर बच सकते हैं, क्योंकि वे सत्ताधारी नेताओं के साथ ख़ूब घुले-मिले हुए हैं। इसलिए वे हमेशा सत्ता के पक्ष में बोलते नज़र आते हैं। चाहे वो कश
'नए नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने पर एक और विदेशी नागरिक को देश छोड़ना पड़ा है. पीटीआई के मुताबिक नॉर्वे की जेन मेट जॉनसन कोच्चि में इस कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई थीं. यह प्रदर्शन 23 दिसंबर को हुआ था. उनका कहना है कि आव्रजन अधिकारियों ने उन्हें भारत छोड़ने के लिए कहा है. जेन मेट जॉनसन पर्यटन वीजा पर भारत आई थीं. गृह मंत्रालय के तहत आने वाले विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय के मुताबिक जांच में पाया गया कि जेन ने वीजा नियमों का उल्लंघन किया था इसलिए उन्हें वापस जाने को कहा गया.
'भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के एक स्कूल में बच्चों को मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) में ‘नमक-रोटी’ परोसे जाने का मामला उजागर करने वाले पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज किये जाने पर प्रदेश सरकार से एक रिपोर्ट मांगी है. पीसीआई के अध्यक्ष चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मध्याह्न भोजन की रिपोर्टिंग करने को लेकर पत्रकार पवन जायसवाल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने किए जाने की खबरों पर चिंता प्रकट की है...'
'राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने बुधवार को राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए और समाज में महिलाओं के सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की है. आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया और जस्टिस महेश चंद्र शर्मा की एक खंडपीठ ने बुधवार को राज्य के मुख्य सचिव और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर राज्य सरकार से सिफारिश की है कि इस मामले में कानून बनाएं...'
'असम में काम करने वाले सभी विदेशी पत्रकारों को राज्य छोड़ने के लिए कहा गया है। द असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक एनआरसी के प्रकाशन की पूरी प्रक्रिया के राजनीतिकरण पर सवाल उठने के बाद विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने असम को अचानक 'संरक्षित क्षेत्र' की श्रेणी के तहत रख दिया है।
'10 और 11 जुलाई को ब्रिटेन और कनाडा सरकार ने लंदन में मीडिया स्वतंत्रता पर विश्व सम्मेलन का आयोजन किया था. इस सम्मेलन में 100 से अधिक देशों के 1500 से अधिक मंत्रियों, राजनयिकों, नेताओं, न्यायाधीशों, शिक्षाविदों और पत्रकारों ने भाग लिया. कारवां के कार्यकारी संपादक विनोद जोस को धर्म और मीडिया पर आयोजित चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. उस चर्चा में जोस ने दीर्घ अवधि की धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति बढ़ती हिंसा जो मुस्लिमों और दलितों की भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या की बढ़ती घटनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं, पर बात की.
'...सुप्रीम कोर्ट के चार मुख्य न्यायाधीशों और चार पूर्व जजों ने जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार के हस्तक्षेप को लेकर चिन्ता जताई है. ये सभी जज कांग्रेस के महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज भी कर चुके हैं. इन जजों का सवाल है कि चीफ जस्टिस मिश्रा ने कोलेजियम के प्रस्ताव को ठुकराने की अनुमति सरकार को कैसे दे दी है? पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढा ने कहा है कि सरकार ने कोलेजियम द्वारा भेजे गए नामों में अपनी पसंद-नापसंद के आधार पर स्वीकृति देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला कर दिया है.
"5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा है लेकिन इस साल सरकार के एक सर्कुलर से विवाद पैदा हो गया है. स्मृति ईरानी के मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूलों को सर्कुलर भेजा है कि 5 सितंबर को बच्चे 3 बजे पीएम का भाषण सुनें. गैर बीजेपी राज्यों में इसका विरोध शुरू हो गया है. सरकार की दो सहयोगी पीएमके और एमडीएमके ने भी इसका विरोध किया है. बड़ा सवाल ये है कि क्या बच्चों को जबर्दस्ती भाषण सुनाने के लिए स्कूल बुलाना जरूरी है. देश के इतिहास में ये तारीख इसी नाम से जानी जाती है.
"5 सितंबर को प्रधानमंत्री का भाषण देशभर के स्कूलों में दिखाए जाने को लेकर केंद्र ने अपने निर्देश में अब थोडा बदलाव कर दिया है। केंद्र की तरफ से जारी नोट में निर्देश दिया गया था कि ये सभी स्कूलों में दिखाया जाना है और जहां टीवी नहीं हैं, वहां उधार या किराये पर टीवी का इंतजाम किया जाए जिसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी। लेकिन, अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने सफ़ाई देते हुए कहा है कि यह कार्यक्रम पूरी तरह से ऎच्छिक है। यानी जो स्कूल यह भाषण लाइव दिखाना चाहें वे दिखाएं, जो न दिखाना चाहें, वे न दिखाएं। दरअसल इससे पहले कुछ गैर-बीजेपी सरकारों ने इस पर होने वाले खर्च को लेकर ऎतराज ज
"प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई आइबी यानी खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में विदेशी अनुदान प्राप्त करने वाले स्वयंसेवी संगठनों को देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरनाक करार देते हुए यह तक कहा गया है कि जीडीपी में दो से तीन फीसद की कमी के लिए वे जिम्मेवार हैं। ऐसा लगता है कि यह रिपोर्ट बहुत जल्दबाजी में तैयार की गई है। जीडीपी का दो-तीन फीसद का आंकड़ा मामूली नहीं होता। इस नुकसान का आकलन आइबी ने कैसे कर लिया, यह चौंकाने वाली बात है। विचित्र है कि इस रिपोर्ट का एक हिस्सा सितंबर 2006 में दिए नरेंद्र मोदी के एक भाषण की प्रकाशित रिपोर्ट के एक अंश से हूबहू मिलता-जुलता है। इस साम्य से जाहिर है कि आइबी न